Friday, October 7, 2016

इस ख़ामोशी की वजह
मैं जान कर न जान पाती हूँ..
जब जलते हुए मकानमें
कुछ परिंदे झुलस रहे हैं
जब साफ़ सुनाई पड़ रही
बच्चों की चीख पुकार
जब सिर्फ धुआं धुआं
रोया रोया आसमान
कोसो दूर से, बम की आवाज़ नगाड़े सी आती है...
और  पेलेट गोलियों की शहनाइसी शायद ..
लोगों के अंतिम हुंकार
विजय स्तोत्र  बन जाते  हैं..
और हम ख़ामोशी में
युद्ध गीत गाते हैं..
ऐ दोस्त...सरहद पर मिलते हैं आज...