Thursday, August 13, 2015


चाँद का महकता टुकड़ा चोच में रख कर
वो बड़ी दूर से आया था
किसी दरवेश ने उसे बताया था 
के है सात समंदर पर
एक खुला आसमान
जहाँ चमकेगा 
ये चाँद का महकता टुकड़ा 
सुने आकाश की सुनी कोख में रख कर टुकड़ा
वो करता रहा  इंतज़ार
के अब और अब आएगी लौ
और रोशनी से भर जायेगा जहाँ...
सदियाँ बीती
पर अँधेरा कम न हुआ
बस कुछ कोपले फूटी है
महकते चाँद के टुकड़े को
अँधेरे में ही
वो वैसा ही बैठा है 
सुनी कोख लिए..
कौन बताये उसे के
चाँद को करने रोशन
खुद सूरज बन जलना होगा..
महकते अँधेरे
तेरे मेरे ज़िन्दगी के तो कायम है ही...

©Rasika