Saturday, February 18, 2017

मैं समय की नोक पर चलनेवाली एक कलाकारीन  हूँ
कलाबाज़ी खाती
कभी चहकती
कभी अपना ख़ाली पेट दिखाती
ख़ाली पेट वो भी नंगा
साड़ी में ऐसी सुविधा होती है,
के नुमाइश भी हो सके और 
सिर ढकने की गुंजाइश भी हो!

मेरे आजके काम में सब कुछ शामिल है
सब कुछ जो सारी मानवजाति को आज के दिन में पूरा करना है 
बच्चे साफ़ करने से ले कर
सारे घर के मूँह में निवाला ठूसने तक,
और ट्रम्प और मोदी की रजनीतियों से गुज़र कर
अपनी कार में पेट्रोल डलाने तक,
और चाँद सितारों की रूमानी बातों से
प्रशाद की तशतरियाँ अलग रखने तक,
अपनी सास से अलगाव बनाने से,
मोहल्ले की लाड़ली बनने तक
बहुत काम है!
और हमेशा की तरह वक़्त बहुत कम!
ये सारा का सारा वक़्त हमेशा कम क्यूँ होता है
जब की मैं स्त्री हूँ
जबकि सारे संसार की बाग़डोर मेरे ही हाथों में थमायी है .
ऐसा माना है मैंने ही!
क्या ख़ुशी से नाचतीं हूँ ,
जब सूपर वुमन का ख़िताब दिया जाता है मुझे,
जिसके बदले अपने अंतस से रोज़ थोड़ा दूर जाती  हूँ में!

मैं, जो समय की नोक पर चलती हूँ
सारा समय इसी चेष्टा में लगी रहती हूँ
के कुछ कर दूँ
 सुकून के लिए
परिवारके समाज के 
सुकून से एक प्याली चाय पीना भूल जाती हूँ कई बार
और ये कहानी कितनियों ने सुनाई
मुझसे भी पहले
पता नहीं क्यूँ 
फिर भी 
मैं समय की नोक पर चलती हूँ।
©RasikaAgashe

Monday, February 6, 2017

कुछ ख़ाली.. कुछ लम्हे 

कुछ ख़ाली ..कुछ लम्हे
कुछ बात ..टूटीसी
दो दरवाज़े
ना खुलनेवाले
कुछ सीढ़ी झुकी सी 

कुछ शब्द.. थमे से
कुछ बाते ..बौराई
ठंडे आँगन में लिपटे
जिस्म थर्राये
कुछ वादे मैं, कर आयी 

कुछ आवाज़ें ...कुछ पंक्तियाँ
कुछ धड़कन ...शर्माई
मेरी रुके साँस
तेरा बदन
और आँखें महक आयी! 
©®rasika