Tuesday, November 17, 2020

जैसे कविता नहीं कफ़न हो

 कवितायें झूट नहीं बोलती

अक्सर झूट छुपा लेती हैं बस 

अपने दिल में दबोच लेती हैं

सारे वादे सारे शिकवे 

और फिर झटक कर  ख़ुद को 

छातीयों को ढक लेती हैं

जैसे कविता नहीं दुपट्टा हो 

और ओढ़ उसे

लहराता रहता है मन 

सच झूट के बीच में 

या फिर 

शरीर को ढँक लेती हैं

जैसे कविता नहीं कफ़न हो 

और फिर 

कुछ नहीं बचता ...

-रसिका 

Wednesday, October 28, 2020

एक लड़की मरी



 एक लड़की मरी

मारनेवाला मुसलमान था 

तो आपने लव जिहाद कहा


एक लड़की मरी 
मारनेवाला हिंदू था 
तो आपने इकतरफ़ा प्यार कहा !

ये कैसा प्यार इश्क़ लव है
तुम्हारा प्यार तो बहुत  ज़ोर मारता है रे
बिलकुल तुम्हारे अवयव की तरह 
जिसके खड़े होने को तुम प्यार का नाम देते हो!
बड़ा पेट्रीआर्कल है !

मरी तो लड़की है !
जो अकेली नहीं मरती
आसपास की अनेको लड़कियों के सपने लेकर मरती हैं 
सपने पढ़ाई के
अकेले नए शहर आने के
दोस्त बनाने के
और प्यार करने के 

जी लड़के भी मरते हैं!
क्यूंके वो कथित निचली जात
अलग धर्म के होते हैं!
जात धर्म ये तुम्हारा समाज 
जो तो पहले से ही पेट्रीआर्कल है!
समझते नहीं हैं वो !
क्यूँ के यहाँ 
वो लड़की नाम की किसी की सम्पत्ति 
चुरा रहे होते हैं!

सारी व्याख्याएँ बदलने का
उनको समूल नष्ट करके
नए अर्थ देने का समय आ गया है !
कुछ शब्द to start with,
संपत्ति, जात , धर्म ,प्यार, लव !
मरनेवाली लड़की/ लड़का 
जीती जागती लड़की/ लड़का 
लड़की / लड़का 
लिंग !
जो बहुत कुछ तय करता है!

रसिका 









Wednesday, August 19, 2020

Hum yakin karna cahahte hain

 हम यक़ीन करना चाहते हैं

के न्याय की देवी सोयी नहीं
के उसके सारे पुजारी वो पंडे नहीं हैं 
जो गंगा तट पर खिंच तानकर 
दक्षिणा लेते है जजमान से 
हम यक़ीन करना चाहते हैं
के न्याय की देवी 
किसी एक जजमान ने रखी हुई नहीं है 

हम यक़ीन करना चाहते हैं
के उसके आँख की पट्टी खुली नहीं है
के वो  झाँककर नहीं ले रही 
किसी एक का पक्ष 
हम यक़ीन करना चाहते हैं 
आँख खोले सो नहीं रहा मेरा देश 
के वो पट्टी जो बंधी है आँखो पर 
वो किसी रंग से मैली नहीं हुई है!

हम यक़ीन करना चाहते हैं के 
वो तराज़ू नहीं झुकेगा सत्ता की ओर 
के सत्ता के और से जितना भी डाला जाए वज़न
जनशक्ति से कम ही तोला जाएगा 
हम यक़ीन करना चाहते हैं 
के दो बिल्लियों के लड़ाई में
बंदर नहीं चट कर पाएगा  न्याय की रोटी !

हम यक़ीन करना चाहते हैं 
के लोकतंत्र का पहला स्तम्भ
नहीं है इतना कमज़ोर
के हमें बात नहीं करने देगा !
हम जो लोक तंत्र के हैं लोग 
हम यक़ीन करना चाहते हैं के 
हम खुलकर बोल सकते हैं!
जी हम यक़ीन करना चाहते हैं 

हमें यक़ीन है के 
लब आज़ाद रहेंगे हमारे
ये जो ज़ुबान है और जज़्बा खौलता हुआ 
उसे नहीं मिटा सकता दमन का ख़ौफ़ 
हमें यक़ीन है के आज जो देशद्रोही क़रार दिए जा रहे हैं
कल क्रांतिकारी कहलाएँगे 
जो सच बात रखते हैं वो सच्चे कहलाएँगे 
हमें यक़ीन है के इंसाफ़ के पुजारीयोंसे 
इंसाफ़  ताक़तवर होगा!
हमें यक़ीन है हमें बोलने दिया जाएगा!