Thursday, January 19, 2017

रुक जा.. थोड़ी थम जा
हवा को साँस तो लेने दे पगली!
के दम ना घुट जाए,
इस सपनों की बारिश में.
कुछ पल ऐसे भी
जब पल रुक जाए
जब हाथ से हाथ ना छूटे
जब पहेली ना बुझे
दूजी पहली से,
जब ठहर जाए ये
सारी कायनात,
जब ज़ुबान पर जूनून हो,
सच ना उतरे...

थोड़ी तो रुक जा
अभी तो घटा ने
कुछ कहा ही नहीं
अभी तो तेरे दिल ने
कुछ सुना ही नहीं!
ये आवाज़ें जो आती है,
जो जाती है
दिल के आरपार,
तेरे पलकों  ने
इन्हें छुआ ही नहीं.
तुझे बड़ी जल्दी पड़ी है!
कुछ तय करने करने की.
अभी तो साये ने
अपनी कोख ढूँढी ही नहीं

रुक जा, थोड़ी थम जा
यह सारा घूँट बेचैनी का
ऐसे पी मत जा पगली,
अभी तो हवा ने साँस ली ही नहीं!
©rasika agashe
एक सपने की आख़िर

एक सपना भोला भाला सा
छैल छबीला
नाचता गाता
कभी फुदकता
कभी अकड़ता

नयी राह
पुरानी गालियाँ
रूखे मकान
मचलती कलियाँ
कुछ वादे
कुछ कमियाँ
हरे पत्ते की
लहराती डलिया

सपने की नाव
हवा में उड़ती
कभी बिफ़रती
कभी संभलती
कभी पंखों में
घुसी रहतीं

सपना टूटा
जैसे पत्ता
लहराता झूमता
ज़मीन पे उतरा
यही तो रखा था
संजोग कर सपने को
फिर उड़ चला
किस दिशा में

सपने देखे जाते हैं
आदिम काल से
टूटने के लिए...

जो पुरा हुआ
वो सच
जो अधूरा रहा
वही तो सपना

©rasika agashe