Tuesday, November 17, 2020

जैसे कविता नहीं कफ़न हो

 कवितायें झूट नहीं बोलती

अक्सर झूट छुपा लेती हैं बस 

अपने दिल में दबोच लेती हैं

सारे वादे सारे शिकवे 

और फिर झटक कर  ख़ुद को 

छातीयों को ढक लेती हैं

जैसे कविता नहीं दुपट्टा हो 

और ओढ़ उसे

लहराता रहता है मन 

सच झूट के बीच में 

या फिर 

शरीर को ढँक लेती हैं

जैसे कविता नहीं कफ़न हो 

और फिर 

कुछ नहीं बचता ...

-रसिका