Friday, April 9, 2021

जब आज का इतिहास लिखा जाएगा

 जब आज का इतिहास लिखा जाएगा 

तब ये अपना समय क्या कहलाएगा ?

तब हमारे बारे में क्या कहा जाएगा ?

जब सत्ताधीश अनर्गल बक रहे रहे थे ?

जब घोषित अघोषित संतमहात्मा 

अपने अपने धर्मों को कैसे बदसूरतीसे निभाना है ये सिखा रहे थे ?

जब तकनीक आसमाँ छू रही थी,

और किसी की जाती की वजह से ठुकाई हो रही थी ?

जब युवाओं को क़ानूनन ‘सरकार’ चुनने का हक़ देकर 

जीवनसाथी नहीं चुनने दे रहे थे?

जब औरतों को पैर की जूती से लेकर देवी तक सभी दर्जे देने के बाद रोज़ नई बंदिश का सामना करना पड़ता था?

क्या इतिहास में हम किसी धर्म का सुवर्ण काल कहलाएँगे???

जिसका नाम लिखने की हिम्मत अभी वर्तमान में मुझ में नहीं है ?

क्या ख़बर सुनाने वालों की कोई अहमियत थी ये अगली पीढ़ी मान पाएगी?

लोग सरकार के विरोध में सड़क पर उतरते हैंक्यूँ के वो सरकार से ज़्यादा देश से प्यार करते हैंये बात कभी दर्ज हो पाएगी?

क्या हमारे बारे में ये कहा जाएगा के 

इस दौर में सोशल मीडिया का इतना विकास हुआ 

के लोग किसी भी समयकिसी की भी ज़िंदगी मेंझांक सकते थेमहज़ उन्होंने शेअर किए फ़ोटोऔर घरेलू बातों के  ज़रिए !

और बहुत लोगों को गालियाँ देना का पैसा मिलता था?

ट्रोल्ज़ के बारे में क्या कहा जाएगा?

क्या भक्त शब्द भक्ति काल तक का सफ़र करवा पाएगा?

क्या राजनीतिक राय अलग होने के वजह से रिश्ते टूट गएये बात हम बच्चों को समझा पाएँगे?

इतिहास तो खैर कौन लिखेगाउसके कितने वर्जन होंगे ??

क्या हम वो नज़र बचा पाएँगे जो निष्पक्ष हो सके?

जब पगलाएअंधेरे और बेवक़ूफ़ाना दौर के बारे में कहा जाएगा 

तब ये ज़रूर पूछा जाएगाके तब तुम कहाँ थे?

ये सवाल भी अपने दौर की देन है!)

और तब मैं कहूँगी 

के एक समय तक 

मैं अंधेरे में उजाले के गीत लिखा करती थी 

पर समय इतना कालाइतना हास्यास्पद होता गया 

के मेरा गीत इतिहास बन गया..

-रसिका 





Tuesday, November 17, 2020

जैसे कविता नहीं कफ़न हो

 कवितायें झूट नहीं बोलती

अक्सर झूट छुपा लेती हैं बस 

अपने दिल में दबोच लेती हैं

सारे वादे सारे शिकवे 

और फिर झटक कर  ख़ुद को 

छातीयों को ढक लेती हैं

जैसे कविता नहीं दुपट्टा हो 

और ओढ़ उसे

लहराता रहता है मन 

सच झूट के बीच में 

या फिर 

शरीर को ढँक लेती हैं

जैसे कविता नहीं कफ़न हो 

और फिर 

कुछ नहीं बचता ...

-रसिका 

Wednesday, October 28, 2020

एक लड़की मरी



 एक लड़की मरी

मारनेवाला मुसलमान था 

तो आपने लव जिहाद कहा


एक लड़की मरी 
मारनेवाला हिंदू था 
तो आपने इकतरफ़ा प्यार कहा !

ये कैसा प्यार इश्क़ लव है
तुम्हारा प्यार तो बहुत  ज़ोर मारता है रे
बिलकुल तुम्हारे अवयव की तरह 
जिसके खड़े होने को तुम प्यार का नाम देते हो!
बड़ा पेट्रीआर्कल है !

मरी तो लड़की है !
जो अकेली नहीं मरती
आसपास की अनेको लड़कियों के सपने लेकर मरती हैं 
सपने पढ़ाई के
अकेले नए शहर आने के
दोस्त बनाने के
और प्यार करने के 

जी लड़के भी मरते हैं!
क्यूंके वो कथित निचली जात
अलग धर्म के होते हैं!
जात धर्म ये तुम्हारा समाज 
जो तो पहले से ही पेट्रीआर्कल है!
समझते नहीं हैं वो !
क्यूँ के यहाँ 
वो लड़की नाम की किसी की सम्पत्ति 
चुरा रहे होते हैं!

सारी व्याख्याएँ बदलने का
उनको समूल नष्ट करके
नए अर्थ देने का समय आ गया है !
कुछ शब्द to start with,
संपत्ति, जात , धर्म ,प्यार, लव !
मरनेवाली लड़की/ लड़का 
जीती जागती लड़की/ लड़का 
लड़की / लड़का 
लिंग !
जो बहुत कुछ तय करता है!

रसिका 









Wednesday, August 19, 2020

Hum yakin karna cahahte hain

 हम यक़ीन करना चाहते हैं

के न्याय की देवी सोयी नहीं
के उसके सारे पुजारी वो पंडे नहीं हैं 
जो गंगा तट पर खिंच तानकर 
दक्षिणा लेते है जजमान से 
हम यक़ीन करना चाहते हैं
के न्याय की देवी 
किसी एक जजमान ने रखी हुई नहीं है 

हम यक़ीन करना चाहते हैं
के उसके आँख की पट्टी खुली नहीं है
के वो  झाँककर नहीं ले रही 
किसी एक का पक्ष 
हम यक़ीन करना चाहते हैं 
आँख खोले सो नहीं रहा मेरा देश 
के वो पट्टी जो बंधी है आँखो पर 
वो किसी रंग से मैली नहीं हुई है!

हम यक़ीन करना चाहते हैं के 
वो तराज़ू नहीं झुकेगा सत्ता की ओर 
के सत्ता के और से जितना भी डाला जाए वज़न
जनशक्ति से कम ही तोला जाएगा 
हम यक़ीन करना चाहते हैं 
के दो बिल्लियों के लड़ाई में
बंदर नहीं चट कर पाएगा  न्याय की रोटी !

हम यक़ीन करना चाहते हैं 
के लोकतंत्र का पहला स्तम्भ
नहीं है इतना कमज़ोर
के हमें बात नहीं करने देगा !
हम जो लोक तंत्र के हैं लोग 
हम यक़ीन करना चाहते हैं के 
हम खुलकर बोल सकते हैं!
जी हम यक़ीन करना चाहते हैं 

हमें यक़ीन है के 
लब आज़ाद रहेंगे हमारे
ये जो ज़ुबान है और जज़्बा खौलता हुआ 
उसे नहीं मिटा सकता दमन का ख़ौफ़ 
हमें यक़ीन है के आज जो देशद्रोही क़रार दिए जा रहे हैं
कल क्रांतिकारी कहलाएँगे 
जो सच बात रखते हैं वो सच्चे कहलाएँगे 
हमें यक़ीन है के इंसाफ़ के पुजारीयोंसे 
इंसाफ़  ताक़तवर होगा!
हमें यक़ीन है हमें बोलने दिया जाएगा!

Monday, December 23, 2019

घुसपैठिए कौन होते हैं?
आठ पैर वाले? बड़े सिर वाले?
इंसान तो नहीं होते हैं शायद!

क्यूँ जाते हैं वो अपने राज्य देश की सीमाओं से बाहर ?
बिहारी महाराष्ट्र में बाहर का है
यू पी  वाला दिल्ली में बाहर का
बाक़ी आंतर्रष्ट्रीय सीमा के तो सब बाहर ही हैं
पर क्यूँ छोड़ना चाहते हैं वो अपनी रिहायशी जगह?
अपना बचपन , अपना आँगन ?
अपनी यादें , अपना जीवन ?

याद रखिए 
ये वो नहीं है जो बड़े पैकेज के लिए अमेरिका चले गए हैं?
जो आपमें से कईयों के बच्चे हैं
जो हर साल दो साल में वापस आकर यादें संजोते हैं!

तो ये कौन होते हैं जो अपने देश वापस नहीं जा पाते!
वो कहीं नहीं जा पाते !
वो कभी यहीं के हो नहीं पाते 
क्यूँ के आप उन्हें कहीं के होने नहीं देते !
वो मूँह उठाकर नहीं सर झुकाकर आते हैं 
वो अपनी पसलियाँ अपने फटे कुर्ते में छुपाते हैं 
वो आपके घरों में सफ़ाई करते हैं,
नालियाँ साफ़ करते हैं
ईंट पत्थर जमा करते हैं, अपने ही कैदख़ानों के लिए ..
सिर्फ़ जीने के लिए आए थे यहाँ!

उनको भगाना चाहिए!
वो हमारे पैसों पर जी रहे हैं
ना भागे तो मारना चाहिए! 
वो हमारे संसाधन इस्तेमाल कर रहे हैं!
उनको कैंप्स में ठूँस के ज़हरीली गैस छोड़नी चाहिए 
वो हमारी न्यायव्यवस्था के लिए ख़तरा हैं!

सही है!
वो हमारे इतने पुराने नहीं है !
तो क्या हुआ हमारे बाप दादा  परदादा 
इस शहर , इस राज्, इस देश में 
कुछ साल, दशक,शतक पहले आए हैं!
ये घुसपैठिओं का देश है 
ये दुनिया ऐसे ही लोंगोसे बनी है 
जो जीने के लिए यहाँ से वहाँ चले गए!

आपने उनका आना देखा
उनकी ग़रीबी देखी
उनका अपनी ज़मीन पर आक्रमण देखा
कभी ये नहीं देखा के ये ज़मीन कभी अपनी नहीं थी!
हम सब घुसपैठिए हैं!
कभी तो मानोगे!
मैं हमेशा सोचती थी 
मुसलमान कैसे से होते हैं 
कहाँ रहते हैं?
गंदगी से भरे मोहल्ले,  कटे लटके जानवर 
दंगाई तस्वीरों में टोपी पहने जवान लौंडे 
पाकिस्तान जीतने पर फूटने वाले पटाखे 
मैंने उनको नहीं सुना था , उनके बारे में सुना था !

मैं हमेशा कहती थी 
मुसलमानों को इस देश में डरने की क्या ज़रूरत है 
किसी के नाम के आगे मोहोम्मद लगा होता है,
तो उसकी अलग जाँच थोड़ी होती है
किसी की दाढ़ी बढ़ी हुई है तो
रेल स्टेशन पर उसकी तफ़तीश थोड़े होती है 
अल्पसंख्याक होने का  डर !
मैंने इसे नहीं देखा था, इसके बारे में सुना था 

और वो भी दिन आया 
जब ब्याह कर एक मुसलमान के घर आयी 
मैं हमेशा के तरह फिर कुछ कह ही ना पायी 
के ये घर मेरे हिंदू घर जैसा ही था!
वही बेटों के लिए परेशान होती अम्मी थी
वहीं बहु बेटी का लाड़ प्यार था 
वही पढ़ाई की ज़िद थी
वही देश का नाम रोशन करने का ख़्वाब था
पर क्या ये देश मैंने इनका रहने दिया था 
क्यूँ के इतने साल से मैंने इनका साथ महसूस नहीं किया था
बस इनके बारे में सुना था!
 रसिका आगाशे

Tuesday, November 26, 2019

कुछ होता है ..कुछ नहीं होता
और इसी बीच बहोत कुछ हो जाता है

कुछ आरज़ुओं की गलियाँ
कुछ सन्नाटे के साएँ
साँस रुक भी जाए
तो भी बहोत कुछ हो जाता है

आसमान मुझ पे झुका सा
रात भीनी टपकती सी
बारिश यूँ रुक भी जाए
तो भी बहोत कुछ हो जाता है

कहीं टकराए ख़यालात
तो कहीं टकराए जिस्म हैं
ये बात ज़ुबा पर ना आए
तो भी बहोत कुछ हो जाता है..

©️Rasika Agashe