जब आज का इतिहास लिखा जाएगा
तब ये अपना समय क्या कहलाएगा ?
तब हमारे बारे में क्या कहा जाएगा ?
जब सत्ताधीश अनर्गल बक रहे रहे थे ?
जब घोषित अघोषित संत, महात्मा
अपने अपने धर्मों को कैसे बदसूरतीसे निभाना है ये सिखा रहे थे ?
जब तकनीक आसमाँ छू रही थी,
और किसी की जाती की वजह से ठुकाई हो रही थी ?
जब युवाओं को क़ानूनन ‘सरकार’ चुनने का हक़ देकर
जीवनसाथी नहीं चुनने दे रहे थे?
जब औरतों को पैर की जूती से लेकर देवी तक सभी दर्जे देने के बाद रोज़ नई बंदिश का सामना करना पड़ता था?
क्या इतिहास में हम किसी धर्म का सुवर्ण काल कहलाएँगे???
जिसका नाम लिखने की हिम्मत अभी वर्तमान में मुझ में नहीं है ?
क्या ख़बर सुनाने वालों की कोई अहमियत थी ये अगली पीढ़ी मान पाएगी?
लोग सरकार के विरोध में सड़क पर उतरते हैं, क्यूँ के वो सरकार से ज़्यादा देश से प्यार करते हैं, ये बात कभी दर्ज हो पाएगी?
क्या हमारे बारे में ये कहा जाएगा के
इस दौर में सोशल मीडिया का इतना विकास हुआ
के लोग किसी भी समय, किसी की भी ज़िंदगी में, झांक सकते थे, महज़ उन्होंने शेअर किए फ़ोटो, और घरेलू बातों के ज़रिए !
और बहुत लोगों को गालियाँ देना का पैसा मिलता था?
ट्रोल्ज़ के बारे में क्या कहा जाएगा?
क्या भक्त शब्द भक्ति काल तक का सफ़र करवा पाएगा?
क्या राजनीतिक राय अलग होने के वजह से रिश्ते टूट गए, ये बात हम बच्चों को समझा पाएँगे?
इतिहास तो खैर कौन लिखेगा, उसके कितने वर्जन होंगे ??
क्या हम वो नज़र बचा पाएँगे जो निष्पक्ष हो सके?
जब पगलाए, अंधेरे और बेवक़ूफ़ाना दौर के बारे में कहा जाएगा
तब ये ज़रूर पूछा जाएगा, के तब तुम कहाँ थे?
( ये सवाल भी अपने दौर की देन है!)
और तब मैं कहूँगी
के एक समय तक
मैं अंधेरे में उजाले के गीत लिखा करती थी
पर समय इतना काला, इतना हास्यास्पद होता गया
के मेरा गीत इतिहास बन गया..
-रसिका