Tuesday, November 26, 2019

कुछ होता है ..कुछ नहीं होता
और इसी बीच बहोत कुछ हो जाता है

कुछ आरज़ुओं की गलियाँ
कुछ सन्नाटे के साएँ
साँस रुक भी जाए
तो भी बहोत कुछ हो जाता है

आसमान मुझ पे झुका सा
रात भीनी टपकती सी
बारिश यूँ रुक भी जाए
तो भी बहोत कुछ हो जाता है

कहीं टकराए ख़यालात
तो कहीं टकराए जिस्म हैं
ये बात ज़ुबा पर ना आए
तो भी बहोत कुछ हो जाता है..

©️Rasika Agashe 

Saturday, November 9, 2019

एक चादर भीनी सी झिनी सी
मेरे दादी की , परदादी की , उसकी भी दादी की
बाक़ी कुछ नहीं,
बस यही विरासत थी
मेरी तुम्हारी.. हम सबकी ..
उसमें हसरतें थी, सुकून था
उसके अंदर के अंधेरे में भी
थी रोशनी की गरमाहट..
हल्की बसंती, हल्की हरी,
लाल काठ और नीले बुटे..
ऐसा ताना बाना था
ऐसा सब कुछ उलझा , पर ख़ूबसूरत ..
के कोई एक रेशा अलग करना मुश्किल !
तुमने छीन ली मुझसे वो चादर
और निकाल फेंक रहे हो
वो सब धागे अलग थलग
जो तुम्हारे पसंद के नहीं
जो एक रंग के नहीं
जो एक आकार के नहीं
जो थोड़े टेढ़े है, उनको तो काट दिया तुमने
और जो बस हैं अलग थोडेसे
वो बस सहमकर लरज रहे हैं..
और बस वो बेरंग चादर
तुम चाहते हो मैं ओढ़ लूँ वापस!
पर उसमें अब वो नरमी नहीं
उसमें अब दुलार नहीं ..
अब ये चादर हमारी नहीं
बस तुम्हारी है शायद ..
अब सुकून की नींद कहाँ!
 ये जगह तेरी ..
ये जगह मेरी ...
ये साँसे मेरी
सारी हवा तेरी !
कुछ कहानियाँ मेरी 
किरदार सिर्फ़ तेरे !
आँखो के आगे का 
अंधियारा भी तेरा,
मेरे घुटते गले में 
आवाज़ भी तेरी ,
और सिर उठा के चलूँ
तो आसमाँ भी तेरा !
और तू कहता है 
क्या तेरा क्या मेरा!
हाँ भाई अब से
मेरा इतिहास भी तेरा !
मेरी कशिश तेरी,
मेरी तहज़ीब तेरी !
गंगा तो तेरी ही थी 
अब जमना भी तेरी ...
बस आँखो से टपकते आँसू मेरे
शर्म से झुकी गर्दन मेरी 
ढुलका हुआ लहू मेरा 
ना ये मज़हब नहीं है मेरा
ना तेरा धर्म है कहीं से मेरा ..
बस कुछ दबी कुचली 
पर  ख़्वाहिशें हैं  मेरी,
तेरी डरावनी रात के बाद
काश बस सवेरा हो मेरा!

रसिका