कुछ गड़बड़ हो रही है
रासायनिक, आणविक शस्त्रो की खुले आम बातचीत
इलेक्शन की गरमागर्मी..
जब खोलो टीवी सेट
वही बहस वही आतंक
..पता नही मुझे नींद क्यूँ नही आती
आज कुछ मारे गए
कल कुछ और
सारे एक जैसे दिखने वाले ..
और बचे हैं कुछ नारे
ख़ून में लिथड़े हुए!
मानवतावादी होना गाली है आज!
और आधा अख़बार भर कर आता है,
दुनिया भर कि राजनैतिक दुष्ट चित्रों के साथ
जो ना तेरे है, ना मेरे हैं
और बचा आधा, फ़िल्मे, क्रिकेट, फ़ुट्बॉल, गाने,
एक अलग रंगीन चकाचक दुनिया
जो ना तेरी है, ना मेरी है
..और नींद ना जाने कहाँ ग़ायब है
सबकी समझ पर न जाने कैसी पट्टी बंधी है।
आवेश, अभिनिवेश हैं मुख्य कलाकार
जो जितनी ज़ोर से चीखे
जितनी फूली हो नसे गले की
महान है!
चाहे 'बात' कुछ की ही ना हो!
किससे लड़े? किस किससे लड़े?
कोई सुनने को तय्यार नहीं।
सब मना रहे त्योहार
डाल रहे वोट
नाचते गाते रोड शोज़, सभाओं में
इतने लोग जो आते हैं, रंगोसे लदे
क्या चैन की नींद सो रहे हैं!
सारे हत्यारे, नेता, बड़बोले
बलात्कारी, अत्याचारी
फ़ेसबूक, ट्विटर पर धमकियाँ देने वाले,
अगर सब चैन की नींद सो रहे हैं!
तो मुझे नींद क्यूँ नही आती ..
©rasika