अगर मंदिर में रेप हो ही सकता है
और मस्जिदों में बंदूके चलाई जा सकती है
तो हमें ग़ौर फ़र्माने की ज़रूरत है
के क्या हमें सच में इन धर्मस्थलों की ज़रूरत है?
मसलन अयोध्या के ज़मीन का फ़साद
वहाँ महज़ रेप होना है या बंदूके चलानी है
इसी बात को उजागर करेगा
तो हमें सारी ही बातों पर ग़ौर फ़रमाने की ज़रूरत है!
और जहाँ तक बात स्त्रियों पर होनेवाली ज़बरदस्ती
योनि शुचिता और धार्मिक हिंसा की है
तो हमें पहले इस पर ग़ौर फ़र्माना चाहिए
के इंसान ने धर्म की रचना ही क्यूँ की थी !
और चार, दस , सौ पापियों को सज़ा देकर
उनके नाक, कान, अंड़कोश तबाह कर
अगर इस विपदा से मुक्त हो ही सकते थे
तो हज़ारों वर्षों की हमारी सभ्यतामें
हम ये क्यूँ नहि कर पाए इस पर ग़ौर फ़र्माना ज़रूरी है !
और इन सारी ख़बरों को
देखने , सुनने , महसूस करने और जीने के बावजूद,
अपने देश, धर्म, राष्ट्र पर गर्व ही करना है
और ख़िलाफ़त की हर आवाज़ की दबाना ही है
तो पहले, अपने आप पर ग़ौर फ़र्माना ज़रूरी है।
ज़रूरी है, बहोत ज़रूरी है, इस समय
अपने आप को सारी तहों के नीचे से खोद कर देखना
ये जो झिल्लीयाँ चढ़ाई है सभ्यता की
उनको खुरचकर ‘आदमी’ नाम के
‘जानवर’ पर ग़ौर फ़र्माना ज़रूरी है!!!
©️Rasika