क्रांति के इंतज़ार में...
जीवन में क्रांति की बड़ी कमी हो गयी है
सभी रोते ,सभी दुखी,सभी लाचार इंसानो को
एक क़तारमें देख कर भी
हम बस अपने आशियाने और नए tv और फ़्रिज की भ्रांति में घूम रहे हैं!
कहाँसे आएगी क्रान्ती?
बस अब घूमते है चे के टीशर्ट पहनकर
और कभी बालों का स्टाइल बदलकर
अब बताएँगे के हमारे ज़माने में क्या दौर था क्रान्ति का
अब तुम फँसें हो अपने मोबाइल में
तो कहाँ से आएगी क्रान्ति
और फिर यही पंक्तियाँ
प्रिंट करवा लोगे मग पर
और लेते रहोगे चुस्कियाँ शान्तिकी
और भूल जाओगे के क्रान्ति जवानी से नहि
जोश से आनी थी,होश में पानी थी
जोश तुमने हम में डाला ही नही
अपनी मध्यमवर्गीय घुट्टी में मिलाकर!
और होश अब कबके उड़ गए
तो अब कहाँसे आएगी क्रान्ति!
©raskin
©raskin