Sunday, June 30, 2019

अच्छा होता ..

भीतर क्या हो रहा .. पता रहता तो अच्छा होता
बाहर क्या हो रहा .. पता है इसलीए खोया है सुकून

गीला सब कुछ मिट्टी से लेकर बदन तक
ख़ून पसीना पानी फ़र्क़ नहीं दिखता
ख़्वाहिशों के लाशों के अंबार हर चौराहे पर है
ज़िम्मा उनका ना उठाना पड़ता तो अच्छा होता

रात अंधियारी है काली , उजाले के ख़ातिर
ख़ुद तक को जला लिया हमने
अब तो हर इंसान है ख़ौफ़मंद
हौसला ना खोया होता तो अच्छा होता

बाहर चारों और अजीब उन्मादी है सन्नाटा
शोर चारों और बस बाज़ार लगा हुआ
अपना सौदा नहीं करूँगी इतनीसी है दुआ
बस अपनी आवाज़ सुनाई देती  तो अच्छा होता

मैं .. बारिश .. उदासी


आज मैं उदास हूँ
ग़ुस्सा, आक्रोश, चाह ये रोज़ का ही
उदासी कभी कभी ही आती है
बारिश की तरह

रोकर भी हल्का ना होने वाला मन
आसमान बन जाता है
और फिर सिर्फ़ ठंडी
काली ज़हरीली वर्षा

उदासी जैसे जम जाती है
पैनी जगह धंसी
चकमक पत्थर सी
ऐसे पत्थर को हाथ लगाया है कभी?
घिसने से पहले तक ..ठंडा !

ऐसे लफ़्ज़ के पीछे लफ़्ज़
किसी लहर की तरह टकराते रहते हैं
और उदासी अंतहीन..
मुट्ठी में समाती ही नहीं

कल सुबह होगी
कामकाज की भगदड़..
और ये उदासी
किसी नागिन की तरह बल खाती
मन के किसी कोने में छिप बैठेगी
फिर उसपर जानकारी का कचरा जाम होगा
दुनियाबी जानकारी
उदासी दब जाएगी
पहचान पुरानी होने तक वो दम खाएगी
और फिर अपना फ़न निकालेगी..
बार बार डसने के लिए
बारिश हो या ना हो ..