मैं .. बारिश .. उदासी
आज मैं उदास हूँ
ग़ुस्सा, आक्रोश, चाह ये रोज़ का ही
उदासी कभी कभी ही आती है
बारिश की तरह
रोकर भी हल्का ना होने वाला मन
आसमान बन जाता है
और फिर सिर्फ़ ठंडी
काली ज़हरीली वर्षा
उदासी जैसे जम जाती है
पैनी जगह धंसी
चकमक पत्थर सी
ऐसे पत्थर को हाथ लगाया है कभी?
घिसने से पहले तक ..ठंडा !
ऐसे लफ़्ज़ के पीछे लफ़्ज़
किसी लहर की तरह टकराते रहते हैं
और उदासी अंतहीन..
मुट्ठी में समाती ही नहीं
कल सुबह होगी
कामकाज की भगदड़..
और ये उदासी
किसी नागिन की तरह बल खाती
मन के किसी कोने में छिप बैठेगी
फिर उसपर जानकारी का कचरा जाम होगा
दुनियाबी जानकारी
उदासी दब जाएगी
पहचान पुरानी होने तक वो दम खाएगी
और फिर अपना फ़न निकालेगी..
बार बार डसने के लिए
बारिश हो या ना हो ..
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