Sunday, June 30, 2019

अच्छा होता ..

भीतर क्या हो रहा .. पता रहता तो अच्छा होता
बाहर क्या हो रहा .. पता है इसलीए खोया है सुकून

गीला सब कुछ मिट्टी से लेकर बदन तक
ख़ून पसीना पानी फ़र्क़ नहीं दिखता
ख़्वाहिशों के लाशों के अंबार हर चौराहे पर है
ज़िम्मा उनका ना उठाना पड़ता तो अच्छा होता

रात अंधियारी है काली , उजाले के ख़ातिर
ख़ुद तक को जला लिया हमने
अब तो हर इंसान है ख़ौफ़मंद
हौसला ना खोया होता तो अच्छा होता

बाहर चारों और अजीब उन्मादी है सन्नाटा
शोर चारों और बस बाज़ार लगा हुआ
अपना सौदा नहीं करूँगी इतनीसी है दुआ
बस अपनी आवाज़ सुनाई देती  तो अच्छा होता

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