Monday, December 23, 2019

घुसपैठिए कौन होते हैं?
आठ पैर वाले? बड़े सिर वाले?
इंसान तो नहीं होते हैं शायद!

क्यूँ जाते हैं वो अपने राज्य देश की सीमाओं से बाहर ?
बिहारी महाराष्ट्र में बाहर का है
यू पी  वाला दिल्ली में बाहर का
बाक़ी आंतर्रष्ट्रीय सीमा के तो सब बाहर ही हैं
पर क्यूँ छोड़ना चाहते हैं वो अपनी रिहायशी जगह?
अपना बचपन , अपना आँगन ?
अपनी यादें , अपना जीवन ?

याद रखिए 
ये वो नहीं है जो बड़े पैकेज के लिए अमेरिका चले गए हैं?
जो आपमें से कईयों के बच्चे हैं
जो हर साल दो साल में वापस आकर यादें संजोते हैं!

तो ये कौन होते हैं जो अपने देश वापस नहीं जा पाते!
वो कहीं नहीं जा पाते !
वो कभी यहीं के हो नहीं पाते 
क्यूँ के आप उन्हें कहीं के होने नहीं देते !
वो मूँह उठाकर नहीं सर झुकाकर आते हैं 
वो अपनी पसलियाँ अपने फटे कुर्ते में छुपाते हैं 
वो आपके घरों में सफ़ाई करते हैं,
नालियाँ साफ़ करते हैं
ईंट पत्थर जमा करते हैं, अपने ही कैदख़ानों के लिए ..
सिर्फ़ जीने के लिए आए थे यहाँ!

उनको भगाना चाहिए!
वो हमारे पैसों पर जी रहे हैं
ना भागे तो मारना चाहिए! 
वो हमारे संसाधन इस्तेमाल कर रहे हैं!
उनको कैंप्स में ठूँस के ज़हरीली गैस छोड़नी चाहिए 
वो हमारी न्यायव्यवस्था के लिए ख़तरा हैं!

सही है!
वो हमारे इतने पुराने नहीं है !
तो क्या हुआ हमारे बाप दादा  परदादा 
इस शहर , इस राज्, इस देश में 
कुछ साल, दशक,शतक पहले आए हैं!
ये घुसपैठिओं का देश है 
ये दुनिया ऐसे ही लोंगोसे बनी है 
जो जीने के लिए यहाँ से वहाँ चले गए!

आपने उनका आना देखा
उनकी ग़रीबी देखी
उनका अपनी ज़मीन पर आक्रमण देखा
कभी ये नहीं देखा के ये ज़मीन कभी अपनी नहीं थी!
हम सब घुसपैठिए हैं!
कभी तो मानोगे!
मैं हमेशा सोचती थी 
मुसलमान कैसे से होते हैं 
कहाँ रहते हैं?
गंदगी से भरे मोहल्ले,  कटे लटके जानवर 
दंगाई तस्वीरों में टोपी पहने जवान लौंडे 
पाकिस्तान जीतने पर फूटने वाले पटाखे 
मैंने उनको नहीं सुना था , उनके बारे में सुना था !

मैं हमेशा कहती थी 
मुसलमानों को इस देश में डरने की क्या ज़रूरत है 
किसी के नाम के आगे मोहोम्मद लगा होता है,
तो उसकी अलग जाँच थोड़ी होती है
किसी की दाढ़ी बढ़ी हुई है तो
रेल स्टेशन पर उसकी तफ़तीश थोड़े होती है 
अल्पसंख्याक होने का  डर !
मैंने इसे नहीं देखा था, इसके बारे में सुना था 

और वो भी दिन आया 
जब ब्याह कर एक मुसलमान के घर आयी 
मैं हमेशा के तरह फिर कुछ कह ही ना पायी 
के ये घर मेरे हिंदू घर जैसा ही था!
वही बेटों के लिए परेशान होती अम्मी थी
वहीं बहु बेटी का लाड़ प्यार था 
वही पढ़ाई की ज़िद थी
वही देश का नाम रोशन करने का ख़्वाब था
पर क्या ये देश मैंने इनका रहने दिया था 
क्यूँ के इतने साल से मैंने इनका साथ महसूस नहीं किया था
बस इनके बारे में सुना था!
 रसिका आगाशे

Tuesday, November 26, 2019

कुछ होता है ..कुछ नहीं होता
और इसी बीच बहोत कुछ हो जाता है

कुछ आरज़ुओं की गलियाँ
कुछ सन्नाटे के साएँ
साँस रुक भी जाए
तो भी बहोत कुछ हो जाता है

आसमान मुझ पे झुका सा
रात भीनी टपकती सी
बारिश यूँ रुक भी जाए
तो भी बहोत कुछ हो जाता है

कहीं टकराए ख़यालात
तो कहीं टकराए जिस्म हैं
ये बात ज़ुबा पर ना आए
तो भी बहोत कुछ हो जाता है..

©️Rasika Agashe 

Saturday, November 9, 2019

एक चादर भीनी सी झिनी सी
मेरे दादी की , परदादी की , उसकी भी दादी की
बाक़ी कुछ नहीं,
बस यही विरासत थी
मेरी तुम्हारी.. हम सबकी ..
उसमें हसरतें थी, सुकून था
उसके अंदर के अंधेरे में भी
थी रोशनी की गरमाहट..
हल्की बसंती, हल्की हरी,
लाल काठ और नीले बुटे..
ऐसा ताना बाना था
ऐसा सब कुछ उलझा , पर ख़ूबसूरत ..
के कोई एक रेशा अलग करना मुश्किल !
तुमने छीन ली मुझसे वो चादर
और निकाल फेंक रहे हो
वो सब धागे अलग थलग
जो तुम्हारे पसंद के नहीं
जो एक रंग के नहीं
जो एक आकार के नहीं
जो थोड़े टेढ़े है, उनको तो काट दिया तुमने
और जो बस हैं अलग थोडेसे
वो बस सहमकर लरज रहे हैं..
और बस वो बेरंग चादर
तुम चाहते हो मैं ओढ़ लूँ वापस!
पर उसमें अब वो नरमी नहीं
उसमें अब दुलार नहीं ..
अब ये चादर हमारी नहीं
बस तुम्हारी है शायद ..
अब सुकून की नींद कहाँ!
 ये जगह तेरी ..
ये जगह मेरी ...
ये साँसे मेरी
सारी हवा तेरी !
कुछ कहानियाँ मेरी 
किरदार सिर्फ़ तेरे !
आँखो के आगे का 
अंधियारा भी तेरा,
मेरे घुटते गले में 
आवाज़ भी तेरी ,
और सिर उठा के चलूँ
तो आसमाँ भी तेरा !
और तू कहता है 
क्या तेरा क्या मेरा!
हाँ भाई अब से
मेरा इतिहास भी तेरा !
मेरी कशिश तेरी,
मेरी तहज़ीब तेरी !
गंगा तो तेरी ही थी 
अब जमना भी तेरी ...
बस आँखो से टपकते आँसू मेरे
शर्म से झुकी गर्दन मेरी 
ढुलका हुआ लहू मेरा 
ना ये मज़हब नहीं है मेरा
ना तेरा धर्म है कहीं से मेरा ..
बस कुछ दबी कुचली 
पर  ख़्वाहिशें हैं  मेरी,
तेरी डरावनी रात के बाद
काश बस सवेरा हो मेरा!

रसिका 

Tuesday, August 27, 2019

उड़ान 

अनजान पलों के बीच क़ैद 
आज की ये रात 
मेरे हथेलिसे तो छूट गयी
तेरे हथेलियों पे काँच के  निशान 
गहरी चोट… 
हम तो बस पतंग उड़ा रहे थे
सपने का माँजा टूटा
तो ऐसे काट गया
के हाथ की रेखा 

लहू से भर गयी… 

Wednesday, July 10, 2019

Upside down

My world is upside down
Your world is upside down 
But you are far away
Iraq, afaganistan, baluchistan, norwey..
I dont know where are you from
I am from INDIA 
(this automatically gets typed in capitals)
Well yes my world is upside down
Emotions..tremendously overwhelming emotions 
Love, truth, work, longing..
And i am thinking about you!
For me,
You don’t have any colour, nationality 
Race, gender , face for that sake 
But i am thinking about you
This is fourth day now
You have to understand..
No one thinks about someone for consecutive four days
No body has time to do so
We all are running in such a pace
That we don’t have time for a kiss, a mere hug
And here i am thinking about you
Because I believe i feel your pain
I have chosen a language to express about this.. which is not mine
May be not yours
Still I believe u understand English 
Everyone understands english
Yes i am from colonised country 
I believe this!i believe in many more things
What are your beliefs?
I don’t know whether you are religious..
But i can feel your pain
Pain .. odourless, colourless, shapeless pain
Like God itself!
Or whatever power running this stupid universe..
And in this universe 
Though we are poles apart
May be geographically ..
Nature wise I don’t know
I don’t know you!
I don’t know why you are in the pain!
Is it war, terrorism, poverty or something unsubstantial?
Why your world is upside down
Actually I should ask this question to myself 
Why my world is upside down 
After fulfilling all basic material needs
Why this void.. this loneliness 
Oh am i into a spiritual crisis?
Are you in one?
By the way are you on Facebook or Twitter?
Is there internet where u stay?
Is your pain virtual ? 
Can u share it
Can i like it?
Or retweet the pain?
What’s this fuss?
Over pain?
Over something I can’t explain ..
Can U feel my pain too?
Are you also curious about me
Are you aware of my very existence?
This all fasad is so small??
And at the same time .. its vast 
Can we grow our pain so big,
That the world beneath wont matter ?
And then our world.. which is upside down
.. gets connected.. from within..
To the extent I realise, u realise
We are one!
Our pain is from the same source..
Our loneliness.. we can beat it together..
With a single touch..
Nah.. not on any screen.. but a real one..
...
...
...
Now at least breathe..
Breathe in my lungs..the distance doesn’t matter..
If only i can know.. that u also feel my pain..
That you are also thinking about me!
See it’s already started melting 





Sunday, June 30, 2019

अच्छा होता ..

भीतर क्या हो रहा .. पता रहता तो अच्छा होता
बाहर क्या हो रहा .. पता है इसलीए खोया है सुकून

गीला सब कुछ मिट्टी से लेकर बदन तक
ख़ून पसीना पानी फ़र्क़ नहीं दिखता
ख़्वाहिशों के लाशों के अंबार हर चौराहे पर है
ज़िम्मा उनका ना उठाना पड़ता तो अच्छा होता

रात अंधियारी है काली , उजाले के ख़ातिर
ख़ुद तक को जला लिया हमने
अब तो हर इंसान है ख़ौफ़मंद
हौसला ना खोया होता तो अच्छा होता

बाहर चारों और अजीब उन्मादी है सन्नाटा
शोर चारों और बस बाज़ार लगा हुआ
अपना सौदा नहीं करूँगी इतनीसी है दुआ
बस अपनी आवाज़ सुनाई देती  तो अच्छा होता

मैं .. बारिश .. उदासी


आज मैं उदास हूँ
ग़ुस्सा, आक्रोश, चाह ये रोज़ का ही
उदासी कभी कभी ही आती है
बारिश की तरह

रोकर भी हल्का ना होने वाला मन
आसमान बन जाता है
और फिर सिर्फ़ ठंडी
काली ज़हरीली वर्षा

उदासी जैसे जम जाती है
पैनी जगह धंसी
चकमक पत्थर सी
ऐसे पत्थर को हाथ लगाया है कभी?
घिसने से पहले तक ..ठंडा !

ऐसे लफ़्ज़ के पीछे लफ़्ज़
किसी लहर की तरह टकराते रहते हैं
और उदासी अंतहीन..
मुट्ठी में समाती ही नहीं

कल सुबह होगी
कामकाज की भगदड़..
और ये उदासी
किसी नागिन की तरह बल खाती
मन के किसी कोने में छिप बैठेगी
फिर उसपर जानकारी का कचरा जाम होगा
दुनियाबी जानकारी
उदासी दब जाएगी
पहचान पुरानी होने तक वो दम खाएगी
और फिर अपना फ़न निकालेगी..
बार बार डसने के लिए
बारिश हो या ना हो ..