Sunday, December 3, 2017

लोग ..जो जीने के लिए करते हैं सफ़र
छोड़ कुछ बर्तन भांडे ..
और कुछ ख़ाली जगह
कुछ धूनें ,पुरानी बस्तियों जितनी
ख़ाली हाथ , कुछ अरमान
..कहीं अपना घोसला बनाने के
चल पड़ते हैं ,यूँ ही जैसे 
चलने के अलावा ना कोई चारा हो
ना कोई वजह जीने की...
चलते रहने के अलावा
और पोहोंचते है .. महानगर में ..
जो मुँह खोले बैठा है..

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