बच्चे...
अंदर की बेचैनी अब
और कितने टुकड़े करेगी
ये समझ नही आता
बस दर्द होता है
ये नन्हें पौधौं को आग लगाकर
जो धुआँ जमा होता है,
तेरे मेरे अंतरिक्ष में !
उसे निगल कर क्या,
ऑक्सिजन की एक बूँद
पैदा कर पाएँगे हम!
हम हो चुके हैं, मौन
दिल ऐसे सड़ गए है,
के यक़ीन नही होता
कभी इंसान के रहे होंगे
और ज़ुबान ज़हरीली..
आओ अब कुछ बच्चों की
मौत पर सोग मानते हैं
और अपने बचे टुकड़े
थाल में सजा ले!
ताकि किसी को शक ना हो
के हमें दर्द हुआ था
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