चाँद का महकता टुकड़ा चोच में रख कर
वो बड़ी दूर से आया था
किसी दरवेश ने उसे बताया था
के है सात समंदर पर
एक खुला आसमान
जहाँ चमकेगा
ये चाँद का महकता टुकड़ा
सुने आकाश की सुनी कोख में रख कर टुकड़ा
वो करता रहा इंतज़ार
के अब और अब आएगी लौ
और रोशनी से भर जायेगा जहाँ...
सदियाँ बीती
पर अँधेरा कम न हुआ
बस कुछ कोपले फूटी है
महकते चाँद के टुकड़े को
अँधेरे में ही
वो वैसा ही बैठा है
सुनी कोख लिए..
कौन बताये उसे के
चाँद को करने रोशन
खुद सूरज बन जलना होगा..
महकते अँधेरे
तेरे मेरे ज़िन्दगी के तो कायम है ही...
©Rasika
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