Friday, July 11, 2014

कैसी अजीब सी रातें आती हैं

कैसी अजीब सी रातें आती हैं
जब लगता है नया दिन आएगा ही नहीं!
नहीं होना ख़ुद का इस दुनिया में,
ये तो ख़याल ए आम है ज़िन्दगी में.
पर इस दुनिया की ही ज़िन्दगी नहीं होगी कल
ये सोचना ख़ौफ़नाक फिर भी जायज़ है
ये साल, और पिछले कई साल ऐसे बीते
जहाँ लोगों ने महीने दर महीने ज़िन्दगी काटी
और अब औरतें गाज़ा की, तय करतीं सफर
ज़िन्दगी शायद कुछ घंटो की मानकर
और हम खुशगवार, मना रहें है ग़म का ख़त्म होना
मन ही मन करते इंतज़ार, सब कुछ ख़त्म होने का
महंगाई, भ्रष्टाचार, हिंसाचार, आरोप-प्रत्यारोप,
किसी क़ौम के, राज्य के, राष्ट्र के नागरिक होने का,
इंतज़ार रात ख़त्म होने का
...कैसी अजीब सी रातें आती हैं
©raskin 

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