Sunday, July 6, 2014

सब ऐसा ही चलता रहा तो...
हम कहाँ जा पहुचेंगे!
हम जो अपने आप को कहलाते ही
लोग ! इन्सान! और न जाने क्या क्या
कहाँ निकल पडे है हम
वैसे कहाँ के लिये चल पड़े  है हम
रास्ता...और ये अनगिनत सितारे..
खोज रहे हैं बेतरतीब से
पता नही क्या!
पेडो कि पत्तीयाँ गिरती रहती हैं ,
असमय
असमय हि सबकुछ पानी के तांडव में
डूबता नजर आता है
असमय!
ये शब्द हमारे समयो का है बस
वर्ना.. गहारते काले बदल, टुटती पहाड़ियाँ,
छोटे छोटे बच्चों कि असमय मृत्यू
के बावजुद..क्या हमारा चलना जरी राहता
...और ये सब ऐसा हि चलता रहा तो
...हम कहीं पहुचेंगे भी!


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