Thursday, June 26, 2014

हमारे समयों में ये कहानी कही जायेगी

हमारे समयों में ये कहानी कही जायेगी
एक कश्ती डूबतीसी , एक ना एक दिन
हवाओं में लहारायेगी
सुरज थम कर देखेगा
चिडिया उसे छू जायेगी
उसके गिले पंखोंसे,आयी रुलाई
वो छुपाए छुपा नाही पायेगा
पुरा शहर गीला गीला
ठंड में ठीठुरते रास्ते
भिखरन कि गोद में आस मुस्कुरायेगी
उसकी मिठी झुर्रीयोंमें
नीली गुलाबी नमी आयेगी
सोती हुई बच्ची कि कानोमें
वो कुछ तो कहेगी
हमारे समयोंमें यही कहानी कही जायेगी

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