Saturday, February 3, 2018

कैसे करें अब बात ..
मैं दही हांडी पर ट्रैफ़िक क्यूँ है पूछती हूँ
तुम जुम्मे की नमाज़ की तरफ़ इशारा करते हो 
मैं उना की बात करती हूँ
तुम गाय की महानता गाते हो
मैं स्कूल बस पर हमले की बात करती हूँ
तुम कश्मीर उठाए चले आते हो 
मैं कभी अपने हक़ की बात करूँ
तो तुम सैनिकों की शहादत बीच में ले आते हो 
मैं अपना फटा चिथड़ा दिखाती हूँ
तुम पाकिस्तान के परचम पर दाग़ दिखाते हो!
मैं पूछती हूँ के क्या हमारे पास जीने के लिए बेहतर उदाहरण नही?
तो तुम मुझे कभी लाल, कभी नीला, कभी हरा क़रार देते हो 
मैं तुम्हारा क्या करूँ
मैं बहस करना चाहती हूँ
जब तुम फ़साद पर आमादा हो!
मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूँ
पर ( क्यूँ की मैं महिला हूँ), 
तुम मुझे बाज़ारू घोषित करते हो!
कैसे करें अब बात

 और जब तुम बात सुनने को तय्यार ही नहीं
तो कैसे समझाऊँ तुम्हें
के मुझे जुम्मे के दिन भी ट्रैफ़िक से परेशानी होती है
और उसी दिन क्यूँ, उन सारे दिन 
जब लोग अपना अपना  मज़हब
 अपने गले में लपेटे 
सड़क पर उतरते हैं
और एक धार्मिक उन्माद में 
बाक़ी दुनिया को भूल जाते हैं!

मुझे कश्मीरी के लोगों की उतनी ही फ़िक्र है
जितना की मुज़फ़्फ़रनगर की, या ग़ाज़ा की
या बर्मा की या कराची की भी
मुझे लोगों की फ़िक्र होती है,y
उनके शहरों केउनके नाम से 
इस चिंता में कोई फ़र्क़ नहि पड़ता!

कैसे समझाऊँ तुम्हें के 
सैनिकों की शहादत से मेरी आँखें भी 
नम हो जाती है कई बार
पर उससे ज़्यादा ये ख़याल रुलाता है
के हमें सरहदें बनानी पड़ी!

वैसे तुम्हारे अंदर इतना ग़ुस्सा है,
तुम अंदर से खौल रहे है,
इसका अंदाज़ा भी नही था मुझे,
जब तक ये मुआ फ़ेस्बुक नही आया था!
तुम मेरे बग़ल में ही तो बैठते थे तब तक
कभी अंदाज़ा भी नहीं हुआ ,
के इतनी नफ़रत का पेड़ है अंदर.
और  जब ऐसे सारे पेड़ों से घिरी हुई हूँ मैं
और मुझ तक कोई तिनका पोहोंच नही पता
रोशनी का
इस अंधेरे  ओरछोर समझ नही आता,
मैं तुमसे बात करना चाहती हूँ,
और तुम मुझे देशद्रोही क़रार दे चुके हो
अब कैसे करें बात






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